बंद होना चाहिए हिंदी का विरोध
हाल ही में गृह मंत्री और राजभाषा समिति के अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें आईआईटी, आईआईएम और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी की जगह हिंदी को पढ़ाई का माध्यम बनाने की अपील की गई थी। यह रिपोर्ट जारी होने के बाद केरल में इसका पुरजोर विरोध हो रहा है। वहां के सीएम ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि, केरल राजभाषा को लेकर बनी इस संसदीय समिति की सिफारिश को स्वीकार नहीं करेगी। इससे पहले भी कई बार हिंदी के विकास और सरकारी कार्यों में इसकी अनिवार्यता को लेकर विरोध हो चुका हैं। कुछ समय पहले फिल्मी सितारों में भी भाषाओं को लेकर विवाद हुआ था।
अक्सर होती है तुलना
अधिकतर समय अंग्रेजी और हिंदी के बीच तुलना की जाती है। किसी भी सरकारी या गैर सरकारी कार्य में अंग्रेजी भाषा द्वारा ही संवाद होता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी अंग्रेजी का ही उपयोग होता है। भारत देश एक ऐसा राष्ट्र है जहां छोटे गांव से लेकर बड़े शहरों तक आम बोलचाल की भाषा में हिंदी का ही उपयोग होता है। आज भी जन सामान्य अपनी बात को समझाने व समझने में हिंदी का ही उपयोग करते हैं। भारत देश में अनेकता में एकता की बात की जाती है ऐसे में हिंदी भाषा के प्रति इस तरह का विरोध जताना सही नहीं है।
अंग्रेजो के साथ आई थी अंग्रेजी भाषा
अक्सर देखा जाता है की अंग्रेजी बोलने वाले हिंदी बोलने वालों को कम समझ कर उनकी अवहेलना करते हैं जबकि अंग्रेजी भाषा का प्रादुर्भाव देश में अंग्रेजों के आने के साथ हुआ था वही हिंदी का इतिहास हजारों साल पुराना है। हिंदी को लेकर महात्मा गांधी का भी कहना था कि, हिंदुस्तान के लिए देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए रोमन लिपि का व्यवहार यहां नहीं हो सकता है। हमारे संविधान में भी हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। अनुच्छेद (343)1949के अनुसार 'संघ की राजभाषा हिंदी होगी देवनागरी लिपि में संघ के आधिकारिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा'। इस के अनुसार हिंदी का उपयोग हर क्षेत्र में होना चाहिए।
पुरे देश को जोड़ती है हिंदी
हिंदी एक ऐसी भाषा है जो पूरे देश को अपने साथ जोड़ कर रखती हैं माना कि किसी भी जरूरी कार्य में अंग्रेजी का उपयोग होता है परंतु हिंदी को पूरी तरह से नकार देना गलत होगा। हिंदी हमारी मातृभाषा है। हिंदी भाषा के ऊपर राजनीति करना इसका असम्मान होगा। भारत देश में हर एक भाषा को समान नजरों से देखा जाता है। यदि एम्स और आईआईएम जैसे विश्वविद्यालयों में हिंदी में पढ़ाई होगी तो इससे हिंदी के विकास में भी बढ़ोतरी होगी वही इस रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है कि अंग्रेजी भाषा का अस्तित्व पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा जितनी जरूरी हिंदी है उतनी ही जरूरी अंग्रेजी भी है। यदि देश के इन जाने-माने विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई होगी तो इससे आने वाली पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति सम्मान और इसकी महत्ता की जानकारी होगी चाहे सिनेमा हो या पत्रकारिता जगत आज भी लोग इसे हिंदी में ही देखना पसंद करते हैं। यहां तक कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विदेशों में जाकर हिंदी को उचित सम्मान देते हुए अपना भाषण हिंदी में ही देते हैं।हर एक देश की अपनी एक मातृभाषा है और सभी उसका सम्मान भी करते हैं। ऐसे में भारत में अपनी मातृभाषा हिंदी का विरोध होना और केंद्र सरकार के इस फैसले को ना मानना गलत होगा। केंद्र सरकार के इस फैसले के महत्व को समझते हुए हम सभी को साथ मिलकर इसे अपनाना होगा और हिंदी को उसका उचित सम्मान फिर से वापस दिलाना होगा
Writer
Moksha Tiwari
Also Read: https://sarvatramedia.blogspot.com/2022/10/media-reports-claiming-shortage-of.html
Appropriate writeup and very relevant in today's time.
ReplyDeleteThank you
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